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काया सूं बांथेड़ा कर मत / राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
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काया सूं बांथेड़ा कर मत
थूं भीतर अंधारौ भर मत।
नीं बगसैला अब चींथ्योड़ा
धोखै सूं माणस नै चर मत।
जीवत माखी गिटग्यो बैरी
करियोड़ा कोल मुकर मत।
काळै मन रा पोत दिसै है
थूं सूकी मनवारां कर मत।
जीवण रौ सत जाण्यां सरसी
मौत जिनावर जैड़ी मर मत।
मून ‘मुसाफ़िर’ चेतौ कर ले
नाजोगां रै घर पग धर मत।