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कारोबार / श्रीविलास सिंह

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आप अकेले हो सकते हैं
किसी दिन
जैसे कि तमाम हरियाली के बीच
तालाब के पूरब उत्तर के कोने वाला
पीपल का पेड़
अकेला होता है
साल के ज्यादातर मौसमों में,
उसके नीचे थोड़ी चहल पहल होती है
तभी जब कोई मर जाता है
जैसे कि पिछले साल मर गई थी मां
हम सबके जिंदा रहते।
ज्यादातर लोगों के जिंदा रहते ही
मर जाते हैं उनके सबसे प्रिय स्वजन,
और तब उस पेड़ की किसी डाल पर
पानी भर कर एक घड़ा लटका दिया जाता है
चार छः दिन उसमें से पानी पीते है चिड़िया चुनमुन
और दसवें दिन यजमान तोड़ देता है घड़ा
अपना सिर घुटाने के पश्चात।
पेड़ फिर अकेला हो जाता है
अपने आसन पर पालथी मारे गंजेड़ी पंडित
बांच रहा है गरुड़ पुराण
और बता रहा है मृतात्मा को गुजरना पड़ सकता है
किन किन विकराल नरकों से
अगर
उसे न दी गयी अगर पेट भर दक्षिणा।
सोचता हूँ
आत्मा को इन नरकों की यात्रा
करनी पड़ेगी अकेले ही
क्यों कि उसके पास जेब भी तो नहीं होती कि
रख ले कुछ मुद्राएँ
दक्षिणा के लिए
नरक के रखवालों को
और वे थोड़ी दूर ही सही
साथ साथ चल सकें।
पर मुँह बाये कुछ औरतों ने अभी-अभी सुना है
कि पंडित को दिया हुआ दान
सीधे पहुँच जाएगा नरकपालों के खाते में
और वे फिर नहीं सतायेंगे मृतात्मा को।
सारा खेल धंधे का है।
पंडित का बयान जारी है और
आत्मा का अकेला सफ़र भी
मदद की कोशिश भी जारी है।
तीन चार मूड़ मुड़ाये लोग
खींच कर एक अकेली बछिया
लाना चाह रहे है बीच आंगन में
जो छूटने की जी तोड़ कोशिश में
कई बार त्याग कर चुकी है गोबर और मूत्र
यूँ ही ख्याल आया कि ऐसे ही
खींच कर लाया होगा दुःशासन
भरी सभा में द्रौपदी को किसी दिन।
खैर किसी तरह बैतरणी पार कर ली है बछिया ने।
पंडित कुछ-कुछ संतुष्ट है मोटी दक्षिणा के बाद।
गरुण पुराण में फिर चालू हो गया है
नरक यात्रा का प्रसंग।
सब को हो गया है संतोष कि
अब नरक रक्षकों को दिया जा चुका है
पर्याप्त उत्कोच और
नहीं सतायेंगे वे अकेली आत्मा को।
संस्कृति की रक्षा का यज्ञ पूरा हो चला है।
अब आराम से खाया जा सकता है
पूरी हलवा।
आत्मा कि अनंत यात्रा जारी है
नितांत अकेले और
दुनियाँ का कारोबार भी।