कालजयी बापू / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
बापू तेॅ वैष्णव ही छेलै, सब के सुख-दुख सेॅ परिचित,
मन के भाव पवित्तर हेनोॅ, सौंसे दुनियाँ में चर्चित ।
कोय धर्मो के हीन नै समझै सब धर्मो लेॅ होनोॅ आदर,
हिन्दू-मुस्लिम तेॅ दोनों ही, बापू लेॅ बस एक बराबर ।
हिन्दू-मुस्लिम के भेदोॅ केॅ मानै एक विषैला रोग,
भारत के कल्याण यही मेॅ जों बैठेॅ दोनोॅ मेॅ योग ।
दोनोॅ धर्मो के लोगोॅ के, मिललै सेॅ भारत स्वाधीन
जो नै मिलतै तेॅ निश्चित ही भारत के छै खण्डो तीन ।
मन सेॅ बापू समझै छेलै भारत के हित यै मेॅ छै,
कहतै रहलै भाग्य देश के, दोनांें के ही जै मेॅ छै ।
बापू के सन्देश अभी भी प्रासंगिक छै, कालजयी रं,
काल यही रं बहतेॅ रहतै, बापू के संदेश यही रं ।
टुकड़ा होलै पर भारत के, बापू के मन कहाँ विभाजित,
दुखिया हिन्दू-मुस्लिम लेली हुनकोॅ हृदय दया सेॅ सिंचित ।
आजादी के मिलथैं जे रं हिंसा केरोॅ बादल फटलै
तभियो बापू के छाती सेॅ, केकरो लेॅ करुणा नै घटलै ।
वहू समय पर सत्य-अहिंसा लेली बापू लड़तेॅ रहलै,
अपनोॅ व्रत केॅ जोगै मेॅ ही, सत्याग्रही के शोणित बहलै ।
काँपी उठलै सौंसे दुनियाँ, भारत के मन पस्त,
भोर जैन्है केॅ होलेॅ तभिये सूरज भैलै अस्त ।
चिड़ियाँ चुनमुन कलरव रोकी, दुख सेॅ होलै मौन,
सौसे ठो भारत मेॅ खाली, लोरे मारै रौन ।
केकरोॅ मुँह में कुछ नै बोली, भजनो के मुँह बन्द,
जिनगी के गल्ला में कसलोॅ फाँसीवाला फन्द ।
निकली पड़लै केकरो मुँह सेॅ, ऊ प्रकाश तेॅ जाय छिनलै
जे हमरा सबके जीवन केॅ अब तक हर क्षण मिललै ।
लेकिन हेनोॅ कहवोॅ निश्चित, गलती ही तेॅ होतै,
जे प्रकाश हमरा सब पैलौं ऊ की केन्हौं बिलैतै ।
ऊ प्रकाश की हेनोॅ होनोॅ, जे भारत केॅ मिललै,
जेकरा पावी सौंसे दुनियाँ, हर्षित होलै, खिललै ।
ऊ प्रकाश तेॅ सदियो बादो रहतै भारत भर मेॅ
आरो सौंसे दुनियाँ जेकरा पैतै अपनोॅ घर मेॅ ।
ऊ प्रकाश केॅ हेनोॅ समझोॅ एक सत्य के तेज,
जे देखी केॅ घोर अचंभित भी छेलै अंग्रेज ।
ऊ प्रकाश केॅ उठतेॅ देखी दुख सेॅ कोय कहलकै
ई तेॅ दूसरोॅ ईसा मसीह केॅ, सूली पर लै देलकै ।
सच्चे मेॅ मुश्किल सेॅ कोय्यो मानतै हेनोॅ पौरुष,
गाँधी हेनोॅ हाड़-माँस के छेलै कोनो मानुष ।
मानवता रोॅ प्रकट पुंज ही विश्वबंधु ऊ छेलै,
देश-देश में विश्व भरी मेॅ प्रेम जगैलेॅ गेलै ।
राष्ट्र प्रेम के ज्यों निचोड़ टा, गाँधी के मन छेलै,
माँटी छोड़ी गंध बनी केॅ कण-कण जाय समैलै ।
हिन्दी जेकरोॅ रहै आत्मा, दलित हृदय आ प्राण,
ऊँच नीच के पाटी खाई, देतेॅ गेलै त्राण ।
देश-देश के सब पीड़ित लेॅ देवदूत रं ऐलै,
सबके प्राणोॅ के पुकार रं, सब मेॅ जाय समैलै ।
जहाँ कहीं जे दुख सेॅ दबलोॅ, वाणी सेॅ लाचार मिलै,
वहीं वहीं पर बापू केरोॅ वाणी के आधार मिलै ।
कलम उठैलेॅ चललै बापू, राष्ट्र-दीन के रक्षा लेॅ,
एक अकेले बापू ही तेॅ धर्म दया के शिक्षा लेॅ ।
के बोलै छै बापू आबेॅ धरा-धाम पर नै छै,
बापू रहतै कल्प-कल्प तांय ई निश्चित छै, तै छै ।
बापू कोनो काया तेॅ नै माँटी मेॅ मिली रहतै,
ई तेॅ उज्जवल भाव जकां ही युग-युग ही जे बहतै ।
जहाँ कहीं भी दीन-दुखित लेॅ, कलम जागतेॅ रहतै,
वहीं-वहीं पर बापू के स्वर गंगा नाँखी बहतै ।
जहाँ कहीं कोय आजादी लेॅ कष्ट उठैतेॅ होतै,
दुनियाँ भर के लोग वही पर गाँधी जी केॅ पैतेॅ ।
जहाँ कहीं भी जीवन संयत ब्रह्मचर्य के मान,
वहीं-वहीं गाँधी जी मिलतै, मेघ राग के तान ।
जहाँ कहीं अन्याय दलन के घोर विरोध हुवै छै,
समझोॅ वै ठां जनमानस केॅ बापू हृदय छुवै छै ।
जहाँ कहीं भी सत्य अहिंसा अपनोॅ पाँख पसारै,
जहाँ कहीं भी सब धर्मो लेॅ हृदय कभी नै हारै ।
जहाँ कहीं भी दुश्मन लेॅ भी मैत्राी भाव विराजै,
जहाँ कहीं भी नारी शिक्षा लेॅ कोय्यो सुर साजै ।
जहाँ कहीं भी चन्दन आगिन साथे साथ रहै छै,
जहाँ कहीं भी जेठोॅ के संग शीतल पवन बहै छै ।
वहीं-वहीं साकार खड़ा छै, बापू के रोॅ रूप अगोचर,
बहतेॅ मिलै छै जीवन के सुख अमृत नाँखी झरझर ।