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काला धुआँ / सूर्यकुमार पांडेय
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काला धुआँ
काला धुआँ गगन में फैला
खाँस रही है चील,
साँस नहीं मछली ले पाती
हुई विषैली झील।
मारे शोर, हो गया बहरा
वन का राजा शेर,
भरा हुआ है जंगल में
कूड़े-कचरे का ढेर।
जंगल बना रेत की बस्ती
भटक रहा है ऊँट,
हरियाली अब नहीं कहीं भी
पेड़ हो गये ठूँठ।
गीदड़, भालू, चीता सबको
तरह-तरह के रोग,
जंगल में मंगल कैसे हो
परेशान सब लोग।
हाथी जैसा मस्त जानवर
दीख रहा है पस्त,
पर्यावरण प्रदूषण से है
जंगल सारा ध्वस्त।
इस मुश्किल पर सब पशुओं ने
मिलकर किया विचार,
रखें स्वच्छ पर्यावरण सभी अब
बात हुई स्वीकार।
नया छिड़ा अभियान, सफ़ाई
का यूँ ताबड़-तोड़,
डरकर पर्यावरण-प्रदूषण
भागा जंगल छोड़।