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काला पैंथर / राग तेलंग
Kavita Kosh से
काले पैंथर तक से लड़ा उसके लिए मैं
लहूलुहान हालत में
अब तक खड़ा हूं
बीच जंगल में
उसका इंतजार करते
हां ! चाकू पर से
मेरी पकड़ कम नहीं हुई है और
गाहे-बगाहे मैं
उसकी धार पर हाथ फेरता रहता हूं
उसके बारे में सोचते हुए
उसके गिर्द
अब शहरी लोगों का जमघट है और
यह भी साफ है कि मैं
उसकी सोच में भी नहीं बचा
कंक्रीट के जंगल के लोगो !
यहां से कभी मत गुजरना
मैं प्रवेश कर रहा हूं इस वक्त
मृत पड़ी काले पैंथर की देह में
सिर्फ कुछ ही क्षणों में
एक काले पैंथर के झपट्टे के लिए
तैयार हो जाओ।