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काला राक्षस-10 / तुषार धवल

तुमने काली अंगुलियों से गिरह खोल दी

काली रातों में

निर्बंध पशु मैं भोग का

नाख़ून गडा कर तुम्हारी देह पर

लिखता हूँ

प्यास

और प्यास...


भोग का अतृप्त पशु

हिंसक ही होगा

बुद्धि के छल से ओढ़ लेगा विचार

बकेगा आस्था

और अपने तेज़ पंजे धँसा इस

दिमाग की गुद्दियों में --

रक्त पीता नई आज़ादी का दर्शन !


लूट का षड़यंत्र

महीन हिंसा का

दुकानों की पर्चियों में, शिशुओं के खिलौनों में

धर्म और युद्ध की परिभाषा में भात-दाल प्रेम में

हवा में हर तरफ़

तेल के कुएँ से निकल कर नदी की तरफ बढ़ता हुआ

हवस का अश्वमेध

नर-बलि से सिद्ध होता हुआ।


बम विस्फोट !!!