भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काला राक्षस-15 / तुषार धवल
Kavita Kosh से
कहाँ है आदमी ?
यह नरमुंडों का देश है
डार्विन की अगली सीढ़ी --
प्रति मानव
सबके चेहरे सपाट
चिंतन की क्षमताएं क्षीण
आखें सम्मोहित मूर्छा में तनी हुई
दौड़ते दौड़ते पैरों में खुर निकल आया है
कहाँ है आदमी ?
प्रति मानव !