भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काला राक्षस-3 / तुषार धवल
Kavita Kosh से
अट्टहास
फिर सन्नाटा।
सम्मोहित मूर्छा में
एक जुलूस चला जा रहा है
किसी शून्य में --
काल में
वह
हमारे मन की खोह में छुप कर बैठा है
जाने कब से
हमारे तलों से रोम-छिद्रों से
हमारे डी.एन.ए. से उगता है
काला राक्षस
हुंकारता हुआ
नाजी सोवियत व्हाइट-हाउस माइक्रोसॉफ्ट पेप्सी दलाल-स्ट्रीट
सियाचीन जनपथ आई.एस.आई. ओजोन एस.पी.एम. एसिड रेन
स्किटज़ोफ्रेनिया सुइसाइड रेप-क्राइम सनसनी न्यूज़-चैनल
बम विस्फोट !!!
तमाशा तमाशबीन ध्वंस
मानव मानव मानव
गोश्त गोश्त गोश्त
घर्र घर्र घूमता है पहिया