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काला / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
एक बार
सब रंग इकट्ठे हुए
लाल
नीला
हरा
पीला
सफ़ेद
काला ज़रा देर से आया
पर
इतनी हड़बड़ी में था वह
कि दूसरों से जा टकराया
अब
किसी भी रंग को
पहचान पाना मुश्किल था ।
अनुवाद : अनिल जनविजय