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कालियनाग जमुनजल भोगै / संजय चतुर्वेद
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ऊधौ कवि कुटैम के लीन
आलोचक हैं अति कुटैम के खेंचत तार महीन
कबिता रोय पाठ बिनसै साहित्य भए स्रीहीन
चिट फंडन के मार बजीफा करें क्रान्ति रंगीन
कालियनाग जमुनजल भोगै खुदई बजाबै बीन ।