भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कालीन / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आइ फेर
कतोक दिनक बाद
मिलन भेलै
धरती आ बरखाक
जुड़ा गेलै
दुनूक हिआ।

आब
धरती पर पसरि जयतैक
भिन्न-भिन्न
हरियर रंगक कालीन।