भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कालीबंगा: कुछ चित्र-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थेहड़ में सोए शहर
कालीबंगा की गलियाँ
कहीं तो जाती हैं
जिनमें आते-जाते होंगे
लोग

अब घूमती है
साँय-साँय करती हवा
दरवाज़ों से घुसती
छतों से निकलती
अनमनी
अकेली

भटकती है
अनंत यात्रा में
बिना पाए
मनुज का स्पर्श।
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा