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काली पृष्ठभूमि: एक अपेक्षा / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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अपने
सहस्त्रों काले कृत्यों पर
श्वेत खड़िया पोते हुए,
अनधिकृत सुविधाओं का-
मसनद लगाये
ओढ़े केहरी-त्वचा
अधपौढ़े
सत्ता के दर्प स्यार
कुटिल दृष्टि को छिपा
थोड़ा सा
हँसकर बोले-
”यह अक्षम्य अपराध?“
आघातित अहं से स्फीत
तेजोद्दीप्त एक लौ उठी
बुझी तत्क्षण
फिर विनत, विनम्र, शब्द-उत्तर
”स्वर्णाभ अर्थ से युक्त
सत्य, कुछ मिले श्वेत नूतन
अक्षर, लिपिबद्ध चाहता था
करना, इसलिए भूल-अपराधमयी
यह योजित काली पृष्ठभूमि बहुत
आवश्यक थी।“