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कालू भण्डारी / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

होलो कालू भण्डारी मालू<ref>योद्धा</ref> मा को माल,
अन्न का कौठारा<ref>भंडार</ref> छा वैका, वसती<ref>वस्तुओं</ref> का भण्डारा।
गाडू<ref>नदियों</ref> घटड़े<ref>घराट</ref> छई, धारू<ref>पहाड़ियों पर</ref> मरूड़े<ref>छानी, झोपड़ी</ref>,
धनमातो<ref>धनी</ref> छौ, अनमातो<ref>अन्नवाला</ref>,
जोवनमातो छौ कालू स्यो भण्डारी।
कालू भण्डारी छौ जब सोल बरस को,
आदी रात मा तैं सुपिनो होयो,
सुपिना मा देखे बैन स्या ध्यानमाला,
देखे वैन वरफानी काँठो<ref>चोटी</ref>
बरफानी कांठा देखे ध्यानमाला को डेरो<ref>घर</ref>।
चाँदी की सेज देखे, सेना का फूल,

आग जसो आँख देखी, दिया जसी जोत।
वाण-सी अरेण्डी<ref>लता</ref> देखी, दई-सी तरेण्डो<ref>भलाई</ref>,
नौण-सी गलखी<ref>टिरी</ref> देखी, फूलू-सी कुटखी<ref>गुच्छा</ref>।
हिया सूरज देख, पीठी मा चन्दरमा।
मुखड़ी को हास देखे, मणियों कू परकाश,
कुमाली-सी ठाणा<ref>रूप, सज्जा</ref> देखे, सोवन<ref>सोना</ref> की लटा।
तब चचड़ैक<ref>हड़बड़ा कर</ref> उठै कालू, भिभड़ैक<ref>बड़बड़ा कर</ref> बैठे,
तब जिया<ref>माँ</ref> बोद<ref>कहती</ref>: क्या ह्वैलो मेरा त्वई?
आज को सुपिनो जिया, बोलणो नी औन्दो।
ना ले बेटा कालू सुपिना को बामो<ref>बहम, या सहारा</ref>,
सुपिना मा बेटा, क्या नी देखेन्दो?
कख नी जायेन्दो, क्या नी खायेन्दो?
मैन ज्यूण मरण जिया हिंवाला ह्वैक औण,
तख रन्दी माता, वा बाँद<ref>सुन्दरी</ref> ध्यानमाला।
कालू भण्डारी मोनीन<ref>मोहनी</ref> मोयाले<ref>मोह लिया</ref>,
तब पैटी<ref>चल पड़ा</ref> गए वो तैं नवलीगढ़।
भैर<ref>बाहर</ref> को रूखो छयो कालू भीतर को भूखो।
कथी<ref>कितना ही</ref> समझाये जियान<ref>माँ ने</ref> वो,
चली आये वो ध्यानमाला का गढ़।
ध्यानमाला औणी छै पाणी का पंद्यारा<ref>पनघट</ref>,
देखी औन्द कालू भण्डारीन वा,
हे मेरा परभू वा बिजली कखन छूटे हैं
सुपिना मा देखी छै जनी<ref>जैसी</ref>, तनी<ref>तैसी</ref> ही छ नौनी या-
आछरी-सी सची, सरप की-सी बची,
अर देखे ध्यानमालान कालू भण्डारी वो,
बांको ज्बान छौ वो, बुराँस को-सी फूल।

तू मेरी जिकुड़ी छै बांकी ध्यानमाला,
त्वै मा मेरो ज्यू छ।
सुपिना मा देखी तू, तब यख आयूँ,
आज तू मैसणी<ref>मुझे</ref> प्रेम की भीख दे।
तब ली गये वै तैं ध्यानमाला अपणा दगड़ा<ref>साथ</ref>,
कुछ दिन इनी ही रैन वो गुपती रूप मा।
तब बोलदो कालू भण्डारी,
कब तैं रण रौतेली इनू लकी लूकीक।
तब ध्यानमाला का बुवा<ref>पिता</ref> धरमदेव,
कालू भण्डारी मिलण गैगे।
सूण सूण धरमदेव,
मैं आयौं डाँड्यों<ref>पहाड़ियों</ref> टपीक<ref>पार कर</ref>, गाडू<ref>नदियों</ref> बगीक<ref>तैर कर, बह कर</ref>।
मैंन जिऊण मरण राजा,
तेरी नौनी ध्यानमाला ल्याण।
ऐलैन्दो बैलोन्दो तब राजा धरमदेव,
मेरा राजा मा आयाँ होला
हैका राज से पाँच भड़,
साधी<ref>जीत लो</ref> लौलो ऊँ तै जु कालू भण्डारी
ब्यौवोलो त्वे ध्यानमाला।
कालू भण्डारी का जोंखा<ref>मूछें</ref> बबरैन<ref>हिली</ref>,
वैकी छाती का बाल जजरैन<ref>खड़े हो गये</ref>।
उठाये तब्री वैन नंगी शमशीर,
चली गये हैका शैर भडू साधण।
इतना मा गंगाड़ी हाट<ref>शहर</ref> को रूपू,
आये ध्यानमाला मांगण।
ब्यौ को दिन तब निच्छै ह्वै गये-
पकोड़ा पकीन, हल्दी रंगीन,

नवली गढ़ मा कनौ उच्छौ<ref>उत्सव</ref> छाये।
कालू भण्डारी लड़दू रैये भडू का सात,
तैका कानू मा खवर नी पौंछी।
पिता की मरजी, अपणी नी छै वीं की,
करांदी<ref>बड़बड़ाती</ref> छ किराँदो<ref>रोती</ref> वा नौनी ध्यानमाला।
तब सुमिरण करदे वा कालू भण्डारी,
तेरी मेरी प्रीत दूजा जनम ताई।
किसमत फूटे मेरी विधाता,
जोडी को मलेऊ फंट्याओ।
तब दैखे वैन ध्यानमाला रोणी छै बराणी।
जाणी याले वैन होई गये कुछ खटको,
रौड़दो-दौड़दो आये माला का भौन।
हे मेरी माला, क्या सोची छयो मैन,
अर क्या करी गये दैव?
कालू भण्डारी, हे कालू भण्डारी,
मेरा पराणू को प्याो होलो कालू भण्डारी।
मेरो सब कुछ तू छ, मैं छऊँ तेरी नारी।
देखे वीन कालू भण्डारी, क्वांसी<ref>रोती</ref> आँख्योंन,
हाथ बुरैया<ref>छिले</ref> छा वैका, खुटा<ref>पैर</ref> छा फुक्यां<ref>जले</ref>,
काडो<ref>काँटा</ref>-सी होयूं छौ वो सूखीक।
मेरा बाबा येन कतना तरास सहे?
गला लगाये वींन तब कालू भण्डारी,
मरण जिऊण मैंन येक ही जाण।
तब बोलदू कालू भण्डारी:
तेरी माया ध्यानमाला मैंकू स्वर्ग का सामल<ref>सामग्री</ref>।
कु जाणी क्या हेन्द विधाता की लेख,
पर मैं औलू व्यौ का दिन,

तू मेरी माला आखरी फेरो ना फेरी।
तब वखन चलीगे वो कालू भण्डारी।
कुछ दिन बाद आये ब्वौ को दिन,
गंगाड़ीहाट मा तब बरात सजे,
ब्यौ का ढोल दमौऊँ धारू गाडू गाजीन।
नवलीगढ़ राज मा भी बजदे बड़ई,
मंगल स्नान होंदू, माला लैरेन्दी<ref>सजी-धजी</ref> पैरेन्दी,
धार<ref>चोटी</ref> मा गँणी<ref>तारा</ref> सी देखेदी माला।
बोलदी तब वींकी जिया<ref>माँ</ref> मुल<ref>मन्द</ref> हैंसी,
ध्यानमाला होली राजौं का लैंख<ref>लायक</ref>।
गंगाड़ोहाट का रूपू गंगसारा की
तब नबलीगढ़ बरात चढ़े।
मँगल पिठाई होये, षट रस भोजन।
तब व्यौ को लगन आये, फेरों की बगत,
छं फेरा फेरीन मालान, सातों नी फेरे-
मैं अपणा गुरू देखण देवा।
तबरेक<ref>तभी</ref> ऐ गये तख साधू एक,
कालू भण्डारी छ कालू भण्डारी,
पछाणीयाले<ref>पहचान ली</ref> मुखड़ी वैकी मालान!
वीं की आँख्यों मा तब आस खिलीगे,
प्रफूल ह्वैगे तब वा ध्यानमाला!
मेरा गुरू जी होला तरवारी<ref>तलवार के</ref> नाच का गुरू,
मैं देखणू चाँदऊँ जरा नाच आज ऊँको।
तब गुरू-साधु वेदी का धोर<ref>नजदीक</ref> ऐगे,
नंगी शमशीर चमकाई वैन,
एक फरकणा<ref>चक्कर</ref> फुन्डो<ref>उधर</ref> मारी, एक मारे उन्डो<ref>नीचे</ref>
पिंडालू<ref>धुइयाँ</ref> सी काटीन वैन, मोदड़ा<ref>तोरी</ref> सी फाड़ीन।
कुछ भागीन, कुछ मान्या गईन,
मान्या गये वो रूपू गंगसारो भी।
तब वख मू ध्यानमाला ही छुटी गये।
लौटी औन्दू तब वीं मू कालू भण्डारी-
ओ मेरी माला आज जनम सुफल होये,
अगास<ref>आकाश</ref> की जोन<ref>चाँद</ref> पाये मैंन फूलू-सी डाली।
तब जुकड़ा<ref>हृदय</ref> लेगे हाथू मा धरीले वा
आज मेरा मन की मुराद पूरी होये।
तबरे लुक्यूँ उठे रूपू को भाई
लूला गंगोला वैको नऊँ छयो
मारी दिने वैन कालू भण्डारी धोखा मा।
रोये बराये तब राणी ध्यानमाला,
भटके जनी ऊखड़<ref>बिना पानी, ऊसर</ref> सी माछी।
मैं क तैं पायूँ सोहाग हरचे<ref>खो गया</ref>,
मैंक तैं मांगी भीख खतेण<ref>गिर गयी</ref>,
कनो मैंक तई दैव रूठे?
रखे दैणी जंगापर वींन कालू को सिर,
बाई जांग पर धरे वो रूपू गैगसारो।
रौंदी बरांदी चढ़े चिता ऐंच,
सती होई गये तब ध्यानमाला!

शब्दार्थ
<references/>