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काले द्धीप / भारत भूषण तिवारी / मार्टिन एस्पादा

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इएला नेग्रा’ में
नेरूदा की कब्र और बगीचे में पड़े लंगर के बीच
उस आदमी ने, जिसके हाथ पत्थर तोड़ने वालों
जैसे थे, पाँच साल के अपने बच्चे को उठाया
ताकि उस बच्चे की आँखें
मेरी आँखों को टटोल सकें
बच्चे की आँखें मानो काले फल जैतून के
बेटा, कहा बाप ने, ये कवि हैं
पाब्लो नेरूदा की तरह
बच्चे की आँखें मानो काला शीशा
मेरे बेटे को दारियो कहकर बुलाते हें
निकारागुआ के कवि’’ के नाम पर,
बाप ने बताया
उस बच्चे की आँखें मानो काले पत्थर
मेरे चेहरे पर कविता को ढूँढते हुए
मेरी आँखों में अपनी आँखों को ढँूढते हुए
उस बच्चे ने कुछ नहीं कहा
उस बच्चे की आँखें मानो काले द्धीप।