भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काले फ़ाख़्ताओं का क़सीदा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का
Kavita Kosh से
चम्पा की शाखों के बीच
मैंने देखे दो स्याह फाख़्ते
सूरज था एक
चांद था दूसरा
प्यारे दोस्तो !
कहाँ है मक़बरा मेरा, मैंने पूछा ?
मेरी दुम में, सूर्य ने कहा
हलक़ में, चांद बोला
और कमर-कमर तक मिट्टी में चलते हुए
मैंने देखे
दो बर्फ़ानी उक़ाब
और एक लड़की निर्वस्त्र !
दोनों थे एक
और लड़की न तो यह थी और न वो
प्यारे उक़ाबो,
कहाँ है मेरा मक़बरा, मैंने पूछा ?
मेरी दुम में, सूर्य ने कहा
हलक़ में मेरे, चांद बोला
चम्पा की शाखों के बीच
मैंने देखे दो फ़ाख़्ते
निर्वस्त्र
दोनों थे एक
और दोनों न तो यह और न वो !
अंग्रेज़ी से अनुवाद : गुलशेर खान शानी