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कालोनी के लोग / योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
Kavita Kosh से
अपठनीय हस्ताक्षर जैसे
कालोनी के लोग !
संबंधों में शंकाओं का
पौधारोपण है
केवल अपनों में ही अपना
पूर्ण समर्पण है
एकाकीपन के स्वर जैसे
कालोनी के लोग !
महानगर की दौड़-धूप में
उलझ ख़ुशहाली
जैसे ग़मलों में ही सिमटी
जग की हरियाली
गुमसुम ढाई आखर जैसे
कालोनी के लोग !
ओढ़े हुए मुखों पर अपने
नकली मुस्कानें
यहाँ आधुनिकता की बदलें
पल-पल पहचानें
नहीं मिले संवत्सर जैसे
कालोनी के लोग !