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काल की चिन्ता न कर / रमेश रंजक

जो जहाँ तक मानते हैं, मान लें
मानना सब कुछ नहीं है, जान लें ।

जो सुखनवर मान के मोहताज हैं
वे न सूरजमुखी कल हैं — आज हैं
आज में जो तात्कालिक भाव है
भाव में जो त्रासदी टकराव है
वे अगर उस मार्ग को पहचान लें
काल को भी जीत लेंगे — ठान लें ।

काल का बल सिर्फ़ भौतिक दायरा
काव्य — गर है काव्य तो कंचन खरा
है खरापन पास जिसके वह अमर
ऐ सुखनवर ! काल की चिन्ता न कर
काल को जो एक दिन का मान ले
पीढ़ियों तक काल से सम्मान ले ।