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काळजै बायरौ / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
नेठाव सूं
वो
घड़तौ रैयौ थनै
देवण
खुद रौ रूप
वा ई गैरी आंख
मोवनी मुळक
लांबा केस
पतळी आंगळियां
काची माटी सूं घड़ियौ
एक एक अंग
पछै जुगां लग
जोवतौ रैयौ थनै
चांणचक एक दिन
उण
काढियौ आपरौ काळजौ
अर
धर दियो
उण माटी रै मांय
पछै वो भूलगियौ ओ सैं
अबै
आखी दुनिया
देवै उणनै ओळबा
वा कांई जाणै
कै उणरौ काळजौ तौ
थारी माटी मिळियोड़ौ है
वो उपर बैठौ है
काळजै बायरौ