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काळ राजा / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आवै जद
मन री मौज
खेलै आखेट
काळ राजा,
छोड’र
बादलां रै हाथ्यां नै
कांकड़ रै सिंवांणै,
आवै उतर’र
हौदै स्यूं
चाल’र उंपालो
जकै स्यूं
नहीं हुवै सावचेत
बापड़ा अणसमझ
भोळ जीव,
करै घात
दिन’र रात
पण कैवै
धायोड़ा नेता
हुग्यो सेस
सांमती जुग
कोनी रया
राजा’र ठाकर
पण कियां मानै
ईं सांपड़त झूठ नै
मारवाड़ा री पिरजा
जठै तां ईं
जींवतो फिरै है
काळ राजा !