काव्य-निर्देशिका / प्रकीर्ण शतक / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
त्रि-शक्ति - अमिधा काली रूप, लक्ष्मी लक्षित लक्षणा
काव्य त्रिशक्ति अनूप, सरस्वती ध्वनि-व्यंजना।।1।।
विभावादि - थिक विभाव मन्दाकिनी, कालिन्दी अनुभाव
सरस्वती संचारिणी तीर्थराज थिर भाव।।2।।
काव्य भेद - गद्यक गिरि, पद्यक जलधि, चंपू वन विस्तार
उर्वर परिसर रूपकक, काव्य नवे संसार।।3।।
लक्ष्य-लक्षण - कहथि छन्द थिक बन्धने अलंकार पुनि भार
गुन रस रीति कुरीति पुनि कवित कोन आकार,।।4।।
छन्द - ‘मन भय तजि रस’ गण गहिअ स्वच्छन्दहि सविराम
वर्ण मात्र गुरु लघु गनिअ छन्द कला अभिराम।।5।।
भाव-ध्वनि - उर वीणामे कविक नित तनले रहइछ तार
सरस भव परसहिँ ध्वनित शत-शत स्वर झंकार।।6।।
दोहा - कल्पनाक सुर - धेनु थन, प्रतिभा वत्स लगाय
कवि दुहाव दोहा दुहथि, पिबि जग सहज जुड़ाय।।7।।
कवि - स्वच्छ पच्छ, पय नीर शुचि, रुचि मानसक विहार
बाहित रसवति सरसवति जय कवि हंस उदार।।8।।
नभ चुबी भावे शिखर रस निर्झर रुचि स्वच्छ
विपिन सूक्ति जत महाकवि हिमालये परतच्छ।।9।।
रीति - हंसी गति वंशीक धुनि रूप अनूप रचैछ
वैदर्भी धनि रीति वश रसिक स्ववश कय लैछ।।10।।
गौर अग पुनि गौरवित पद समस्त मस्तीक
ओज भरलि उद्दीपिका गौड़ी गिरा प्रतीक।।11।।
सघन जघन पद गति तुलित ओज मधुर धुनि गीत
पुरुषायित समरहु स्मरहु पांचाली रस रीत।।12।।
वचन रचन पटु चटुल पद कलित वेश विन्यास
रस परिपाटी कत अधिक लाटी रीति विकास।।13।।