भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काश! कि एक पल को ख़ुदा हो जाती / ऋचा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काश! कि एक पल को ख़ुदा हो जाती
मेरे हाथों में तेरी शिफ़ा हो जाती
गहरे ज़ख्म भर दे, वह दवा हो जाती
दर्द को हवा कर दे वह दुआ हो जाती
काश! कि एक पल को खुदा हो जाती

दिल के रिश्ते गहरे जो टूट गए कहीं
हाथ जो छूट गए कहीं
उसे मिलाने की चाह हो जाती
काश! कि एक पल को ख़ुदा हो जाती

जलाया जो ज़िन्दगी की धूप ने
तपते दिल को जो दे सुकून
वो ठंडा फाहा हो जाती
काश! कि एक पल को खुदा हो जाती

बरस कुछ यूं ज़मीं पर कि
तेरी रहमत के दरिया की
अंतहीन कथा हो जाती
काश! कि एक पल को खुदा हो जाती।