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काश! होता मज़ा कहानी में / महावीर उत्तरांचली
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काश! होता मज़ा कहानी में
दिल मिरा बुझ गया जवानी में
फूल खिलते न अब चमेली पर
बात वो है न रातरानी में
उनकी उल्फ़त में ये मिला हमको
ज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में
आओ दिखलायें एक अनहोनी
आग लगती है कैसे पानी में
तुम रहे पाक़-साफ़ दिल हरदम
मै रहा सिर्फ बदगुमानी में