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काश! / रामगोपाल 'रुद्र'

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मैं भी काश! नयन के मन को जीवन में अपना कर पाता!

मैं भी हँसता हँसी फूल की, आँखों में ऋतुराज चुराकर,
अपने में फूला न समाता, किसी हिये का राज चुराकर,
मेरे मन की ख़ुशी चहकती नयन-नयन के आसमान में,
मन-मन की गुनगुन बन जाता, मेरा जीवन भी जहाँ में;
मैं भी आज तुम्हारे मुख-सा, शोभा से, सुख से भर जाता।

फूटी पड़ती अंग-अंग में, कलियों की बेचैन जवानी,
माठी-मीठी गंध साँस् में, प्राणों में फूलों की वाणी,
मेरी भी पलकों पर मोहे, नए-नए सपने मुस्काते,
तारे आसमान के टिमटिम, नए-नए सन्‍देश सुनाते,
मेरा चाँद गगन में उगता, दुनिया का सागर लहराता।