काशी स्तुति/ तुलसीदास
काशी स्तुति (राग भैरव)
सइअ सहित सनेेह देह भरि,कामधेनु कलि कासी।
समनि सोक संताप पाप रूज, सकल-सुमंगल-रासी।1।
मरजादा चहुँ ओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी।
तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अविनासी।2।
अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
गलकंबल बरूना बिभा िजनु, लूम लसति, सरिताऽसि।3।
दंड पानि भैरव बिषान,तलरूचि-खलगन-भयदा-सी।
लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी।4।
मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर, सुसरि-सुख सुखमा-सी।
स्वारथ परमारथ परिपूरन,पंचकोसि महिमा-सी।5।
बिस्वनाथ पालक कृपालुचित7 लालति नित गिरजा-सी।
सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी।
पंचााच्छरी प्रान7 मुद माधव7 गब्य सुपंचनदा-सी।
ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी।7।
चारितु चरिति करम कुकरम करि, मरत जीवगन घासी।
लहत परम पद प्य पावन, जेहि चहत प्रपंच- उदासी।8।
कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला -सी।
तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी।9।