काश, लौटकर वही दुबारा,प्यारा बचपन आता! / शम्भुनाथ तिवारी
काश, लौटकर वही दुबारा,प्यारा बचपन आता!
पढ़ते और खेलते रहना, काम यही होता था,
गलती और शरारत करने पर,पिटकर रोता था।
मोटू कहकर विद्यालय में, टीचर पास बुलाते,
गिनती और पहाड़े का भी, सस्वर पाठ कराते।
गाकर नहीं सुना पाने की, रोज सजाएँ पाता।
काश, लौटकर वही दुबारा,प्यारा बचपन आता!
ताल–तलैया बाग–बगीचे फिरता भागे-भागे,
धमाचौकड़ी करने में भी, रहता सबसे आगे।
छुट्टीवाले दिन तो अक्सर,इतनी हद हो जाती,
देर रात तक इंतजार में अम्मा भी सो जाती।
मैं अच्छा – सा नया बहाना, लेकर ही घर आता।
काश, लौटकर वही दुबारा,प्यारा बचपन आता!
घरवालों ने मुझको नटखट-जिद्दी मान लिया था,
एक बार मेले में जाना, मन में ठान लिया था।
मेरी जिद के आगे, मेरे बाबू जी झुक जाते,
मुझको कंधे पर बैठाकर, मेले में ले जाते।
मैं कंधे पर बैठे – बैठे ही, अक्सर सो जाता।
काश, लौटकर वही दुबारा,प्यारा बचपन आता!
जाड़ेवाली रात, रजाई की थी बात निराली,
सुबह देर तक सोते रहते, अम्मा देती गाली।
कान ऐँठकर कहती, ‘नालायक,अब तक सोता है।
रोज सुबह जल्दी जगने से, स्वास्थ्यठीक होता है।’
उनकी ढेर नसीहत से,मन ही मन गुस्सा आता।
काश, लौटकर वही दुबारा,प्यारा बचपन आता!
अब तो सब बीती बातें हैं, जीवन भी है रीता,
स्वप्न हो गया सब कुछ,जबसे प्यारा बचपन बीता।
अगर कभी वरदान माँगने का मौका मिल जाए,
मैं तो बस मागूँगा फिर से, बचपन ही खिल जाए।
बचपन की वे मीठीं यादें, भुला नहीं मैं पाता।
काश, लौटकर वही दुबारा,प्यारा बचपन आता!