काश ! मैं रख पाती याद वह पहला दिन / क्रिस्टीना रोजेटी
काश मैं रख पाती याद वह पहला दिन,
वह पहला लम्हा, जब तुम मुझसे मिले थे,
धूप थी या बादलों की छाँव थी, पता नहीं,
उमस थी या सर्दियों का गुनगुनापन,
सच में, कुछ भी तो याद नहीं,
कितनी अन्यमनस्क थी कि न रोक पाई
फिसलते हुए पलों को,
एक धुन्ध थी न हटा पाई, न देख पाई उस धुन्ध से परे,
कितनी नादान जो न महसूस कर सकी अपने दिल में
उभरती हुई गुदगुदी को, खिलती हुई उस कली को,
व्यग्र होते हुए भी जो खिल न सकी,
अगर मैं सहेज सकती उसे, अगर थाम सकती उसे
मुट्ठियों में,
क्या मैं उसे ऐसे जाने देती?
क्या लापता हो जाने देती मैं उसे पिघलती बर्फ़ की तरह;
अब बचा है नम हथेलियों में,
केवल वह पहला स्पर्श,
तुम्हारी हथेलियों का स्पर्श..
कहीं कुछ अनछुआ-सा स्पर्श....
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोनाली मिश्र
और अब पढ़िए कविता मूल अँग्रेज़ी में
I wish I could remember that first day,
First hour, first moment of your meeting me,
If bright or dim the season, it might be
Summer or Winter for aught I can say;
So unrecorded did it slip away,
So blind was I to see and to foresee,
So dull to mark the budding of my tree
That would not blossom yet for many a May.
If only I could recollect it, such
A day of days! I let it come and go
As traceless as a thaw of bygone snow;
It seemed to mean so little, meant so much;
If only now I could recall that touch,
First touch of hand in hand – Did one but know!