काश ! / जितेन्द्र सोनी
काश! मैंने अपने दर्दों को बताया होता
सीने के जख्मों को दिखाया होता
मैंने तो तुम्हारा हर आँसू पी लिया
तुमने भी तो मेरे घावों पर होठों को लगाया होता
तुमने हमेशा अपनी उम्मीदों की दुहाई दी
कभी मेरी एक आशा को भी पूरा करके दिखाया होता
तुम तो हमेशा फूलों में खोयी रही
काश ! तुमने मुझे काँटों से उठाया होता
मेरी तो हर साँस पर तुम्हारा नाम है
काश! तुम्हारी धडकनों ने भी मुझे बुलाया होता
गम की तपिश भी न आने देता तुम तक
अगर तुमने मुझे सीने में बसाया होता
तुम्हें प्यार का स्वर्ग देता
अगर तुमने मुझे अपना बनाया होता
जान भी लूटा देता तुम पर
काश! तुमने घर मेरा बसाया होता
मेरी वफ़ाएं सरपरस्ती करती तुम्हारी
अगर तुमने मुझे न यूँ ठुकराया होता
अब तो मरने के बाद भी चैन नहीं है दिल को
कम से कम मेरी अर्थी पर एक फूल तो चढ़ाया होता