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काश आ जाये वो मुझे जान से गुज़रते देखे / मोहसिन नक़वी

काश आ जाये वो मुझे जान से गुज़रते देखे
खवाहिश थी कभी मुझ को बिखरते देखे

वो सलीके से हुआ हम से गुरेज़ाँ वरना
लोग तो साफ़ मोहब्बत से मुकरते देखे

वक़त होता है हर एक ज़ख़्म का मरहम मोहसिन
फिर भी कुछ ज़ख़्म थे ऐसे जो न भरते देखे