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काश कि पहले लिखी जातीं ये कविताएं-1 / प्रियदर्शन
Kavita Kosh से
वह एक उजली नाव थी जो गहरे आसमान में तैर रही थी
चांदनी की झिलमिल पतवार लेकर कोई तारा उसे खे रहा था
आकाशगंगाएं गहरी नींद में थीं
अपनी सुदूर जमगग उपस्थिति से बेख़बर
रात इतनी चमकदार थी कि काला आईना बन गई थी
समय समय नहीं था एक सम्मोहन था जिसमें जड़ा हुआ था यह सारा दृश्य
यह प्रेम का पल था
जिसका जादू टूटा तो सारे आईने टूट गए।