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काश यादों को करीने से लगा पाता मैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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काश यादों को क़रीने से लगा पाता मैं।
तेरी यादों के सभी रैक हटा पाता मैं।
एक लम्हा जिसे हमने था जिया जी भरकर,
काश उस वक़्त की तस्वीर बना पाता मैं।
मेरे कानों में पढ़ा प्रेम का कलमा तुमने,
काश अलफ़ाज़ वो सोने से मढ़ा पाता मैं।
एक वो पृष्ठ जहाँ तुम ने मैं हूँ ग़ैर लिखा,
काश उस पृष्ठ का हर लफ़्ज़ मिटा पाता मैं।
दिल की मस्जिद में जिन्हें रोज़ पढ़ा करता हूँ,
आयतें काश वो तुझको भी सुना पाता मैं।