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काश हृदय के भाव तुम्हें मैं समझा पाती / रंजना वर्मा

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काश हृदय के भाव तुम्हें मैं समझा पाती॥

उर में भर अनुराग चूमती कदम तुम्हारे
तुम बाहों में भर लेते सिहरा तन मेरा,
कम्पित अधरों की अनकही बात सुन लेते
कर लेते मेरे अंतर में मौन बसेरा।

स्वप्न तुम्हारे नयनों में भर मुसका पाती।
काश हृदय के भाव तुम्हें मैं समझा पाती॥

कैद पड़ी लज्जा बन्धों में प्रेम सुधा यह
काश तुम्हारे मृदु अधरों को छूने पाती,
तोड़ विश्व के बंध अगर तुम मुझ तक आते
सच साथी सौभाग्य और सुख दूने पाती।

तृषित धरा पर स्नेह सुधा यदि बरसा पाती।
काश हृदय के भाव तुम्हें मैं समझा पाती॥