भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काहे करींला रवा भेद-भाव अइसन / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
हमनियों के हाथ-गोड़ बड़ुए रउए जइसन
काहे करींला फेन भेद-भाव अइसन।
हमनी के बानी जा, एही से इ देश बा
कड़ी-कड़ी मूछ बा, आ बनल बनल भेस बा
हमनिए प टिकल बा राउर सब फैशन
कहे करींला रउआ भेद-भाव अइसन।
खाट-खाटी बिनींला हमनी के राउर
छान-छप्पर छाईंला, देवार सबके चिनींला
तब काहे बइठब हमनी जमीन पर
रहब जा काहे चउखट के बहरी
हमनी के देश काहे हो जाला राउर नेशन
काहे करींला रउआ भेद-भाव अइसन।