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काहे कों भगतन कों नाच नचावत है / नवीन सी. चतुर्वेदी

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काहे कों भगतन कों नाच नचावत है।
कनुआ तेरी भौत बुरी यै आदत है॥

ऐ रे मनमोहन यै कैसौ प्रेम कियौ।
एक'हु बार न पूछी कैसी हालत है॥

आज'हु गैया, बछरा, मोर, मनक्खन कों।
कारी-कामरिया बारे की जरूरत है॥

तै नें राज भवन पायौ, हम नें जंगल।
सच्च'उँ सब की अपनी-अपनी किसमत है॥

आज'हु नन्द-भवन के बाहर नन्द-बबा।
बाट तिहारी जोहत-जोहत रोवत है॥

कैसें या बिसदा कों हम बिसराएँ किसन।
"बिरह-बेदना ब्रज-बासिन की दौलत है"॥