भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

का करित जो इहो करित ना तऽ / मनोज भावुक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

KKGlobal}}


का करित जो इहो करित ना तऽ
लूट के पेट ऊ भरित ना तऽ

फाट जाइत करेज कहिये ई
आँख से दर्द जो बहित ना तऽ

टूट जइतीं, बिखर-बिखर जइतीं
नेह भाई के जो मिलित ना तऽ

लोग कहिये उखाड़ के फेंकित
पेड़ जो आज ई फरित ना तऽ

ना कबो आ सकित नया मोजर
डाल से पात जो झरित ना तऽ