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का जरत त्रिविध जड़, धुँआ ना धँधोरी / लछिमी सखी
Kavita Kosh से
का जरत त्रिविध जड़, धुँआ ना धँधोरी ।
जे हाथ-गोड़-हाड़ भसम होत तोरी।।
खोजत ना आपन विछुड़ल जोरी।
सतुआ ना पिसान एको बान्हि के झोरी।।
नाहीं एको फोकचे, नाहिं पड़ल फोरी।
नाहिं कबो एको ठोप ढरेले लोरी।।
पथलो ले बा बज्जर हिरदया कठोरी।
चोखोरल तीर, सेहु मुरकल मोरी।।