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का है जौ भोपाल समझ लो / महेश कटारे सुगम
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का है जौ भोपाल समझ लो ।
जी कौ है जंजाल समझ लो ।
बैठे हैं ऊँचे हौदन पै,
बड़े-बड़े घड़याल समझ लो ।
गाँवन की छाती पै बैठौ,
खेंचत है जौ खाल समझ लो ।
रोज़ मरत हैं कैउ भूक सें,
खुद खा रऔ है माल समझ लो ।
खुद मौटौ हो रऔ जनता खौं,
बना रऔ कंगाल समझ लो ।
सबई जिला ई की पूजा खौं,
लयें लयें फिर रये थाल समझ लो ।
जित्ते बड़े-बड़े अपराधी,
सबकौ रखत खयाल समझ लो ।
सालन सें कोरौ पारौ बस,
खूब बजा रऔ गाल समझ लो ।
जेई चलत रऔ सुगम अगर तौ,
हुइयै भौत बवाल समझ लो ।