का होगे मीतन मोर देस ला? / जीवन यदु
रकसा मन दिन-दिन बाढ़त हे, सतवंता मन सत छाड़त हें
काटे कोन कलेस ला? का हो गे हे मितान मोर देस ला?
गोल्लर मन के झगरा मं ख़ुरखुंद होवत हे बारी,
चोर हवयं रखवार, त बारी के कइसे रखवारी,
जब ले गिधवा-पिलवा के जामे हे पंखी डेना,
तब ले सत्ता के घर मं बइठे हे वन लमसेना,
मांस के लोंदा वर ये लड़थे गिनती कस चिल्ला के पढ़थे,
गांधी के संदेश ला, का हो गे हे मितान मोर देस ला ?
बड़ा अचंभो, हरियर पेड़ ल चरदिस घुनहा कीरा,
बिसर उलट वासी ल जाही ये ला देख कबीरा,
ठग बिंदिया ले बड़का बिदिया हबे त मोला बताना,
मेहता साहब कस कतको झन लुटत हवे खजाना,
ठग्गू मनके महल अटारी, खीर खाय बर सोन के थारी,
देखव इनखर टेस ला, का हो गे मितान मोर देस ला ?
गांव के मंदिर खंडहर भइगे चमगेदरी के बासा,
भीतर कूतनिन पिलवा देथे बाहिर जम थे पासा,
आन गांव के मंदिर बार सरधा के बइहा पूरा
धरम ला मूड़ दिस राजनीति ह नेत के उल्टा छूरा
मनखे मनके ला काट त हे, तभो ले चट नी कस चाट त हें
तुलसी के उपदेश ला, का हो गे हे मितान मोर देश ला?
फुसुर फुसुर जनता सोही त देस ह कइसे जागे,
अंधरा के आगु आगु अंधियार घलो ह भागे,
सपना ल देखत देखत डोकरा के झरे बिरौनी,
लेड़गा मनखे जनम के कोंदा, पढ़े लिखे हे मौनी
जीयत हन हम सबला साहिके, जइसे अपनेच देस मं रहिके
तापत हन परदेस ला, का हो गे हे मितान मोर देस ला?