भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किएक मुदा एहिना / हरेकृष्ण झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
माइक कोखि त’ कोनो बेर बदलल नहि हेतनि !
खूनमे ममताक सोह
एके रंग चलल हेतनि -
मोनमे सपनाक लहरि सेहो एके रंग !!

तरेगन सभक संग तालमेल क’ क’
ओगरने हेताह अहाँकें ओहिना
चन्द्रमा ओ सूर्य
जेना अहाँक आन कोनो भाइकें-;
जीव नेहसँ चपचप करैत सत्त भुवनक
रचने होएत सभ गोटएकें
एके तरहक गाढ़ अनुरागसँ;
झहरल होतए अन्तरिक्षमे सोहर
सभक बेरमे एक रागभासमे !!

एके गोसाउनसँ मँगैत छी
सहज सुमतिक वरदान-
एके बीजी पुरूखसँ पबैत छी नाम-गाम-ठाम;
एके माटिपानिमे करैत छी
अपन-अपन जीबाक ओरिआओन !!
जखन ई भुवन होइत रहैत अछि लहालोट
बिलहैत सौंदर्यक शुभंकर सनेस-
कोना लगैत अछि पसाही सभक नस-नसमे
एक दोसराक लेल-
चमकैत अछि भालाक नोक कोना
सभक एकेकटा धड़कनमे-?
-अरे होइत एलैक’छि भैयारीमे एहिना अदौसँ
कहैत छथि पकठोस बुधियार सभ गामे-गाम-
पूछि क’ देखिऔ त’ एको बेर अहाँ
पूछि क’ देखिऔ त’ एको बेर
अपन आलाक निविड़ एकान्तमे-
किएक मुदा एहिना ?