भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किड धा किड धा / सुरेश विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किड धा किड धा
किड किड-किड किड
बजे दांत के तबले

थर थर-थर थर
करते चुनमुन
बाथरूम से निकले।

कोट, कोट पर कोट
पहन कर मोटे-मोटे सेठ
बन गये बाबू दुबले,

ओढ़ रजाई सोये
सूरज देर-देर तक
रह रह करवट बदले।

तले पकौड़े मम्मी
झगड़ें पम्मी-शम्मी
मैं पहले, मैं पहले,

दूर नदी के तीर
लगाये ध्यान, मछलियाँ
गड़पे पाजी बगुले।