भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कितना अच्छा होता / भारत यायावर
Kavita Kosh से
वह तेज़ी से मरता हुआ आदमी
सोचता है तेज़ी से जवान होती
बेटी के बारे में । रहता है घुँटता ।
वह तेज़ी से उम्र की ढलान पर लुढ़कता आदमी ।
बेटी बड़ी हो रही है । फूल खिल रहा है ।
फूल महक रहा है । फूल चहक रहा है ।
और वह आदमी ढरक रहा है ।
वह बाप है ।
बाप, जिसके पैरों में जूते भी आकर काँपते हैं ।
बेटी बड़ी हो रही है ।
कितना अच्छा होता ।
बाप नहीं होता वह ।
बेटी नहीं होती । कितना अच्छा होता ।
अपने में घुलता आदमी । सोचता है ।
सिर्फ़ सोचता भर है । कितना अच्छा होता ।
वह आदमी ही नहीं होता ।