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कितना और पढ़ूँ मैं? / प्रकाश मनु

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कितना और पढूँ मैं बाबा,
कितना और पढ़ूँ?

पापा कहते, पढ़ो-पढ़ो जी
मम्मी कहती, अब तू पढ़ ले,
दादी कहतीं लिखन-पढ़न की
सभी सीढ़ियाँ चढ़ ले।

सिर पर लेकर भारी पत्थर
डगमग-डगमग कदम बढ़ाकर,
कितने दुर्ग चढूँ मैं बाबा
कितने दुर्ग चढूँ?

बस्ता है या भारी पत्थर
नहीं भावना इसमें दिल है,
चाहे जितनी मेहनत कर लो
आती पास नहीं मंजिल है।

खेल-कूद से छुट्टी कर लूँ
क्या मित्रों से कुट्टी कर लूँ?
कितना और कुढ़ूँ मैं बाबा
कितना और कुढ़ूँ?

झंझट हैं ये मोटे पोथे
जैसे कठिन लड़ाई हो,
निकल इन्हीं से दुश्मन सेना
मुझे पीटने आई हो।

यहाँ फँसा हूँ, वहाँ फँसा हूँ
सब दिन बस डरता रहता हूँ,
कितना और लड़ूँ मैं बाबा
कितना और लड़ूँ?