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कितना कुछ सह लेता यह मन / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
कितना कुछ सह लेता यह मन!
कितना दुख-संकट आ गिरता
अनदेखी-जानी दुनिया से,
मानव सब कुछ सह लेता है कह पिछले कर्मों का बंधन।
कितना कुछ सह लेता यह मन!
कितना दुख-संकट आ गिरता
इस देखी-जानी दुनिया से,
मानव यह कह सह लेता है दुख संकट जीवन का शिक्षण।
कितना कुछ सह लेता यह मन!
कितना दुख-संकट आ गिरता
मानव पर अपने हाथों से,
दुनिया न कहीं उपहास करे सब कुछ करता है मौन सहन।
कितना कुछ सह लेता यह मन!