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कितना बुरा हुआ / सीमा अग्रवाल
Kavita Kosh से
अच्छा करना अच्छा कहना
कितना बुरा हुआ
कुछ नज़रों ने खिल्ली मारी
कुछ ने फेका कौतुक
कुछ ने ढेरों दया दिखा कर
बोला 'बौड़म भावुक'
बिना मुखौटा जग में रहना
कितना बुरा हुआ
कुछ ने संदेहों के चश्मों
के भीतर से झांका
कठिन मानकों पर मकसद को
बहा पसीना आँका
सच्चा होना, सच को सहना
कितना बुरा हुआ
कुछ ने बेबस माना, हमदर्दी का
हाथ बढ़ाया
कुछ ने 'अच्छा' होने का सब
बुरा-भला समझाया
अपनी धार पकड़ कर बहना
कितना बुरा हुआ