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कितना सहज था मैं / हरप्रीत कौर
Kavita Kosh से
सफल मित्रों को
लिखता रहा चिठ्ठियाँ
असफल प्रेमियों के लिए
होता रहा दुःखी
मेले में रहा ढूँढ़ता
खो गई लड़कियों के चेहरे
भूली हुई बारहखड़ी
लिखता रहा बेटी की कापियों पर
छिपाता रहा तुमसे
उन लड़कियों के खत
जिनके लिए मैं दुनिया का सबसे ईमानदार
प्रेमी था
तुम्हारी बहन के लिए लिखे मैंने
सबसे उदास गीत
खेल खेल में खुलता रहा
तुम्हारे आगे
कितना तो सहज था मैं