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कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है / कमलेश द्विवेदी
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दौड़-भाग के बीच कभी जब फुरसत के दो पल मिल जाते,
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।
बड़ा चुनौती भरा काम है
घर-बाहर हर जगह निपटना।
कभी-कभी कितना मुश्किल हो
यहाँ न पटना वहाँ न पटना।
ऐसे में जब कोई मसला किसी तरह से हम निपटाते,
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।
मंज़िल भी आसान न होती
रस्ता भी मुश्किल हो जाता।
चलते-चलते किसी समय जब
साहस बहुत शिथिल हो जाता।
तब मंज़िल के दृश्य अगर कुछ आँखों की सीमा में आते,
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।
बड़े-बुजुर्ग सही कहते हैं
संघर्षों से भरी ज़िन्दगी।
संघर्षों से तपकर बनती
कुन्दन जैसी खरी ज़िन्दगी।
कुन्दन जैसी चमक-दमक जब हम अपने जीवन में पाते,
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।