कितनी ख़ुशी की बात है शादी-विवाह है।
शुरुआत ज़िन्दगी की हुई नव्य-राह है॥
खिलती सभी की ज़िन्दगी जीवन में एक बार,
आती बहार झूम के हरसू उछाह है।
बेटी विवाह की है ख़ुशी आइए सभी,
पुरजन के संग-साथ ख़ुशी पाने की चाह है।
माता, पिता, कुटुम्ब सभी जानते हैं यह-
शादी बिना दहेज के अब भी अथाह है।
उल्लास का समय है शुभाशीष दीजिए,
साहित्य ही समाज का अब ख़ैर-ख़्वाह है।