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कितनी ख़ुशी की बात है शादी-विवाह है / कैलाश झा 'किंकर'
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					कितनी ख़ुशी की बात है शादी-विवाह है। 
शुरुआत ज़िन्दगी की हुई नव्य-राह है॥
खिलती सभी की ज़िन्दगी जीवन में एक बार, 
आती बहार झूम के हरसू उछाह है। 
बेटी विवाह की है ख़ुशी आइए सभी, 
पुरजन के संग-साथ ख़ुशी पाने की चाह है। 
माता, पिता, कुटुम्ब सभी जानते हैं यह-
शादी बिना दहेज के अब भी अथाह है। 
उल्लास का समय है शुभाशीष दीजिए, 
साहित्य ही समाज का अब ख़ैर-ख़्वाह है।
 
	
	

