कितनी जल्दी / रणजीत

कितनी जल्दी सभ्य हो गई हो तुम सचमुच!
शादी क्या की है तुमने
बस दो ही दिन में
दुनिया भर के शिष्टाचार का पाठ पढ़ लिया
धन्यवाद के उचित पात्र पतिदेव तुम्हारे
कुछ ही दिन की सोहबत से जिनकी
तुझ जैसी बेबाक़ जंगली लड़की ने भी
हाथ जोड़ अभिवादन करना सीख लिया है
पहले केवल बैठी-बैठी फूहड़ हँसी हँसा करती थी
पानी माँग बैठता तो
कितनी बातों के बाद कभी लाया करती थी
वह भी देते वक्त हाथ में
कपड़ों पर भी थोड़ा डाल दिया करती थी
किन्तु आजकल जब भी आता हूँ
बिन कहे चाय का प्याला लेकर आ जाती हो
याद करो कैसी शरारती थी कुछ दिन पहले तक
देखो मेरी इस अंगुली पर यह निशान
अब तक भी बना हुआ है
जहाँ काट खाया था तुमने!
पहले तो तुम बिलकुल गँवार थी सचमुच
किसी दूसरे के भावों का
कुछ भी ध्यान नहीं रखती थी
जब भी कभी तुम्हारा छोटा भाई
किसी पत्र में छपी हुई कोई मेरी ही कविता
लाकर तुम्हें दिया करता था
मेरी ही आँखों के आगे तुम बस
एक पंक्ति पढ़
मुँह बिचका कर फेंक दिया करती थी
लेकिन शादी के बाद
न जाने कैसे इतनी जल्दी बदल गई हो
कल ही तुमने
अपने पति के आगे मेरे कविताओं की
कितनी अधिक प्रशंसा की थी!
पहले मैं जाने को होता तो तुम
कसकर पेन्ट पकड़ लेती थी
अब कितने शालीन ढंग से
फाटक तक आ मुझे विदा करती हो
कितनी ज्यादा सभ्य हो गई हो तुम सचमुच!

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