भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितनी ज़ुल्फ़ें कितने आँचल उड़े चाँद को क्या ख़बर / वसी शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी ज़ुल्फ़ें कितने आँचल उड़े चाँद को क्या ख़बर
कितना मातम हुआ कितने आँसू बहे चाँद को क्या ख़बर

मुद्दतों उस की ख़्वाहिश से चलते रहे हाथ आता नहीं
चाह में उस की पैरों में हैं आबले चाँद को क्या ख़बर

वो जो निकला नहीं तो भटकते रहे हैं मुसाफ़िर कई
और लुटते रहे हैं कई क़ाफ़िले चाँद को क्या ख़बर

उस को दावा बहुत मीठे-पन का ‘वसी’ चाँदनी से कहो
उस की किरनों से कितने ही घर जल गए चाँद को क्या ख़बर