भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितनी हसीं है शाम सुनाओ कोई ग़ज़ल / साग़र पालमपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी हसीं है शाम सुनाओ कोई ग़ज़ल

गर्दिश में आये जाम सुनाओ कोई ग़ज़ल


लौट आयें जिससे प्यार की ख़ुश्बू लिए हुए

रंगीन सुबह—ओ—शाम सुनाओ कोई ग़ज़ल


घूँघट उठा के फूलों का फिर प्यार से हमें

ये रुत करे सलाम सुनाओ कोई ग़ज़ल


जो कम करे फ़िराक़ज़दा साअतों का बोझ

ले ग़म से इन्तक़ाम सुनाओ कोई ग़ज़ल


रुत कोई भी हो इतना है ग़म अहल—ए—सुख़न का

शे`र—ओ—सुख़न है काम सुनाओ कोई ग़ज़ल


जिसका इक एक शे`र हो ख़ु्द ही इलाज—ए—ग़म

जो ग़म करे तमाम सुनाओ कोई ग़ज़ल


जंगल हैं बेख़ुदी के जो शहर—ए—अना से दूर

कर लें वहीं क़याम सुनाओ कोई ग़ज़ल


होंठों पे तन्हा चाँद के आया है प्यार से

‘साग़र’! तुम्हारा नाम सुनाओ कोई ग़ज़ल



साअतों=क्षणों